Monday, 18 May 2015

आदि पर्व (22): पुरु वंश परिचय

आदि पर्व के संभव पर्व में शकुंतला और ययाति के उपाख्यानों के बाद एक संभव पर्व आया है (संभव पर्व के अंदर एक संभव पर्व) जिस में जनमेजय के अनुरोध पर वैशम्पायन ने उस के वंश का परिचय दिया है. जनमेजय के कहने पर वैशम्पायन ने दो बार वंश परिचय दिये हैं. दोनो में बहुत अंतर हैं. यहाँ बस दूसरा वंश परिचय दिया जा रहा है. पहले में दो घटनायें हैं जो अप्रत्याशित होने के चलते कदाचित् महत्वपूर्ण हैं.
पहला तो यह कि दुष्यंत पुत्र भरत की तीन पत्नियाँ थीं जिन से उसके नौ पुत्र हुए थे. भरत ने उनमें से किसी को अपने पुत्र होने के योज्ञ नहीं समझा. यह देख तीनो माताओं ने अपने सभी पुत्रों का वध कर दिया था. भरत ने तब एक यज्ञ आयोजित किया जिसके बाद भरद्वाज की कृपा से उसे एक पुत्र हुआ था.
और दूसरा यह कि ऋक्ष के पुत्र संवरण के राज्यकाल में अनावृष्टि हुई थी, अकाल से प्रजा त्रस्त थी और पांचालों ने आक्रमण कर भरत वंशियों को पराजित कर दिया था. भारत उन से बचने के लिए सिंधु देश के वनों में भाग गये थे जहाँ उनके एक सहस्त्र वर्ष मुँह छुपाए रहने के बाद वशिष्ठ उनसे मिलने आया था. भारत कुमारों ने वशिष्ठ से अपने पुरोहित बनने की प्रार्थना की. वशिष्ठ मान गया और तब उसने अपने मंत्र बल से भरत-वंशी राजा को वृषभ के श्रंग या ऐरावत के दाँतों की तरह बली बना कर सभी क्षत्रियों के अधिष्ठाता के रूप में स्थापित कर दिया.
दूसरे वंश परिचय में इनकी चर्चा तो नहीं ही है, ऋक्ष के पुत्र (और उत्तराधिकारी) का नाम भी संवरण नहीं बल्कि मतिनार बताया गया है. प्रस्तुत हैदूसरा वंश परिचय.     

   
जन्मेजय के पूछने पर वैशम्पायन ने उस केपूर्वजों के नाम गिनाए.  वैशम्पायन  कह रहा है:

दक्ष की पुत्री अदिति के पुत्र विवस्वत का पुत्र वैवस्वत मनु था. मनु के पुत्र हा का पुत्र था पुरुरवा जिसे जन्मेजय के राजवंश का आदि पुरूष कहते हैं. पुरुरवा का पुत्र आयु, उसका पुत्र नहुष और नहुष का पुत्र ययाति हुआ था. ययाति के अपनी दो पत्नियों से पाँच पुत्र हुए थे: यदु,  तुर्वसु,  द्रह्यु, अनु और पुरु. यदु के वंशज यादव हुए और पुरु के पौरव. पुरु का पुत्र जनमेजय (प्रथम) हुआ, जिसने वानप्रस्थ होने के पहले तीन आश्वमेध यज्ञ और एक विश्वजीत यज्ञ किया था.

जनमेजय का पुत्र  प्रचिन्वन था, जिस ने पूर्व दिशा के सारे राज्यों को जीत कर अपना साम्राज्य उन क्षेत्रों तक फैलाया था जहाँ सूर्य का उदय होता है. प्रचिन्वन ने एक यादव राजपुत्री से विवाह किया था,  उन का पुत्र संयाति हुआ. संयाति का पुत्र अहँपाति हुआ जिस का पुत्र सार्वभौम था. सार्वभौम ने सुनंदा नाम की एक कैकेय राजपुत्री का अपहरण कर उसे अपनी पत्नी बनाया था. उनका पुत्र  जयत्सेन था. जयत्सेन ने एक विदर्भ राजकुमारी से विवाह किया था. उनके पुत्र अराचीन ने भी एक वैदर्भी से विवाह किया और उस का पुत्र हुआ महाभौम, जिस का पुत्र अयुतनायी कहलाया. यह नाम उस के एक यज्ञ कराने के चलते पड़ा था जिस यज्ञ में एक अयुत (दस सहस्त्र) पुरुषों की वसा का उपयोग हुआ था.  

अयुतनायी का पुत्र अक्रोधन हुआ जिस का पुत्र देवातीथि था. देवातीथि की पत्नी विदेह की मर्यादा थी. उनका पुत्र हुआ अरिहन, जिस का पुत्र ऋच था. ऋच का पुत्र ऋक्ष था जिस ने तत्क्षक की पुत्री ज्वाला से विवाह कर मतिनार को उत्पन्न किया. मतिनार ने सरस्वती के किनारे बारह वर्षों तक एक यज्ञ किया था. यज्ञ की समाप्ति पर सरस्वती (नदी) ने प्रकट हो उसे  अपना पति चुना. उनका पुत्र तंसु हुआ. तंसु का पुत्र इलिन. इलिन के पाँच पुत्रों में दुष्यंत ज्येष्ठ था. दुष्यंत और विश्वामित्र-पुत्री शकुंतला का पुत्र भरत हुआ, जिसके नाम पर, राजन, तुम भारत कहलाते हो.

भरत का पुत्र भुमन्यु था, जिसका पुत्र सुहोत्र हुआ. सुहोत्र ने इक्ष्वाकु वंश की सुवर्णा से विवाह कर हस्ति को उत्पन्न किया जिस ने यह नगरी, हस्तिनापुर, बसाई. हस्ति का पुत्र विकण्ठन था जिस का पुत्र अजमीढ हुआ. अजमीढ को चार पत्नियों से चौबीस सौ पुत्र हुए थे. उनमें संवरण ने इस राजवंश को आगे बढ़ाया.

संवरण का पुत्र पुरु और पुरु का पुत्र विडूरथ हुआ, उस के पुत्र अरुग्वान का पुत्र परीक्षित (प्रथम) था. परीक्षित के पुत्र भीमसेन का पुत्र पर्याश्रव हुआ. पर्याश्रव का पुत्र प्रतीप था. प्रतीप ने शिवि की पुत्री सुनंदा से तीन पुत्र उत्पन्न किए देवापि, शान्तनु और  बाह्लीक. अपनी बाल्यावस्था में ही देवापि के  वानप्रस्थ हो जाने के चलते (1) शान्तनु राजा बना.  कहा जाता है कि इस राजा के स्पर्श मात्र से वृद्धों को वर्णनातीत आनंद मिलता था साथ ही उन्हे पुनर्यौवन भी प्राप्त हो जाता था.

शांतनु ने गंगा से विवाह कर देवव्रत को उत्पन्न किया था जो बाद में भीष्म कहलाया. अपने पिता शांतनु की इच्छा पूरी करने के लिए भीष्म ने उसका विवाह सत्यवती, अन्य नाम गंधकली, से करवाया. अपने कौमार्य काल में सत्यवती ने पराशर के पुत्र द्वैपायन को जन्म दिया था. शांतनु और सत्यवती के दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य. वयस्क होने के पहले ही गन्धर्वों के हाथों चित्रांगद मारा गया था और विचित्रवीर्य राजा बना. विचित्रवीर्य ने काशी नरेश की दो पुत्रियों, अंबिकाऔर अंबालिका से विवाह किया किंतु वह पुत्रहीन था जब उसकी मृत्यु हो गयी. दुष्यंत के वंश को चलाने के लिए सत्यवती ने अपने पहले पुत्र द्वैपायन का स्मरण किया. 

स्मरण मात्र से द्वैपायन प्रकट हुआ और अपनी माता की इच्छा जान उस ने अंबिका से धृतराष्ट्र, अंबालिका से पांडु और एक दासी से विदुर उत्पन्न किए. द्वैपायन के वरदान से ही धृतराष्ट्र और गांधारी को सौ पुत्र हुए. उन सौ पुत्रों में चार विशेष जाने जाते हैं: दुर्योधन, दुःशासन, विकर्ण और चित्रसेन. पांडु की दो पत्नियाँ थीं – कुंतीऔर माद्री. एक दिन आखेट में पांडु ने काम क्रीड़ा रत एक मृग को अपने तीरों से मार दिया था. पर मरने वाला कोई मृग नहीं एक ऋषि था. मरणासन्न ऋषि ने पांडु को शाप दिया "मेरी इच्छा पूरी होने के पहले तुम ने मुझे मार दिया इस लिए तुम भी अपनी इच्छा पूरी होने के महले इसी तरह मर जाओगे". ऋषि का शाप सुन पांडु भय से पीला पड़ गया और उस ने अपनी पत्नियों के निकट जाना छोड़ दिया.

अपनी पत्नियों के साथ पांडु वन में तपस्वियों की तरह रहता था जब उसे अपने परलोक की चिंता होने लगी. सन्तानहीन व्यक्तियों के लिये मृत्योपरांत कोइ उच्च लोक नहीं हैं यह सोच कर उस ने कुंती से संतान उत्पन्न करने का अनुरोध किया. कुंती को अपनी कौमार्यावस्था में ही दुर्वासा ऋषि से एक मंत्र मिला था जिस मंत्र से वह किसी देवता का आह्वान कर सकती थी. उस मंत्र से बुला कर उस ने धर्मराज से युधिष्ठिर, पवन देव से भीम और देवेन्द्र से अर्जुन उत्पन्न किए. पांडु के कहने पर उस ने वह मंत्र माद्री को भी दिया जिस से अश्विनिकुमारों को बुला कर माद्री ने जुड़वा, नकुल और सहदेव को उत्पन्न किए.

एक दिन वन में पुष्पों और आभूषणों से सुसज्जित माद्री को देख पांडु से नहीं रहा गया और अपनी कामेच्छा पूरी करने के उद्देश्य से वह उसके निकट चला गया. किंतु माद्री का स्पर्श करते ही ऋषि के शाप से उसकी मृत्यु हो गयी. दुखी माद्री ने अपने यमजों को कुंती को सौंप कर अपने पति की चिता पर आत्मदाह कर लिया. पांडु की मृत्यु के कुछ समय बाद उस के पाँचो पुत्रों और कुंती को वन के कुछ तपस्वी हस्तिनापुर में भीष्म और विदुर के पास ले चले. उनका परिचय कराने के बाद वे तपस्वी अचानक विलुप्त हो गये और वहाँ पुष्प वृष्टि होने लगी साथ ही दिव्य वाद्यों की ध्वनियाँ भी सुनाई देने लगीं. यह सब देख, सुन भीष्म ने पाँचो पांडवों को अपने पास रखा और उनके पिता के लिए मृत्योपारांत किए जाने वाले शास्त्रोक्त कर्म कराए.     

दुर्योधन हस्तिनापुर में पांडवों को देख कर बहुत जलता था और उन्हे वहाँ से भगाने के हर संभव उपाय खोजता रहता था. पर विधाता के लिखे के आगे दुर्योधन की एक नहीं चली. फिर धृतराष्ट्र ने उन्हे छल से वर्णावत भेजा,जहाँ उन्हे जला मारने का प्रयास किया गया था पर विदुर से जानकारी मिल जाने के चलते वे बच गये और वहाँ से निकल कर, हिडिंब को मारते हुए वे एकचक्र नाम के गाँव गये जहाँ उन्होने बक राक्षस का वध किया. एकचक्र से वे पांचाल गये और द्रौपदी को जीत कर वापस हस्तिनापुर लौटे.  

वहाँ वे कुछ दिन शांति से रहे. वहीं उनके पुत्रों के जन्म हुए - युधिष्ठिर का प्रतिविन्ध्य, भीम का सुतसोम,अर्जुन का श्रुतकीर्ति, नकुल का शतानीक और सहदेव का श्रुतकर्मण. ये सभी द्रौपदी के पुत्र थे. इनके अतिरिक्त युधिष्ठिर ने गोवासन की पुत्री देवकी को एक स्वयंवर में जीता था जिस से उसे एक पुत्र हुआ यौधेय. भीमसेन ने काशी नरेश की पुत्री बलंधारा से विवाह कर एक पुत्र सर्वग उत्पन्न किया था. अर्जुन द्वारका की सुभद्रा को बलात हर कर हस्तिनापुर लाया था. उन का पुत्र हुआ अभिमन्यु.  नकुल ने चेदि नरेश की कन्या करेणुमति से विवाह किया था. उसके पुत्र का नाम था निरमित्र और सहदेव ने एक स्वयंवर में मद्र की विजया को जीता था जिस से उसका पुत्र हुआ था सुहोत्र. इन पुत्रों के जन्म के पहले भीमसेन के हिडिंबा से एक पुत्र हुआ था घटोत्कच.  पांडवों के यही ग्यारह पुत्र हुए थे (2), जिनमें अभिमन्यु ने राजवंश चलाया.

उस ने विराट की पुत्री उत्तरा से विवाह किया था. उत्तरा ने एक मृत बालक परीक्षित को जन्म दिया था जिसे वासुदेव की बात मानते हुए कुंती ने अपनी गोद में रखा. अश्वत्थामा के शस्त्र से दग्ध हो यह बालक छह मासमें पैदा हुआ था पर वासुदेव ने इसे पुनर्जीवित कर पूर्ण गर्भ से उत्पन्न बालक के सदृश सुदृढ़ बना दिया था. और परीक्षित ने मद्रावती से विवाह किया जो, राजन, तुम्हारी माता है. और जनमेजय तुम ने वपुष्टमा से विवाह कर दो पुत्र उत्पन्न किए हैं शतानीक और शंकुकर्ण. शतानीक ने विदेह राजपुत्री से विवाह कर एक पुत्र उत्पन्न किया है अश्वमेधदत्त.

राजन, पुरु और पांडवों के वंशजों का परिचय समाप्त हुआ.   व्रती ब्राह्मणों  और प्रजा की रक्षा करने वाले क्षत्रियों को इसे सुनना चाहिए. वैश्यों को इसे ध्यान से सुनना चाहिए और शूद्रों को, जिनका काम बाकी तीनों की सेवा करना है,  इसे भक्ति के साथ सुनना चाहिए.


(1) देवापि के विषय में आदि पर्व के संभव पर्व में एक जगह बताया गया है कि वह बाल्यावस्था में वानप्रस्थ हो गया था, दूसरी जगह बताया गया है कि उस ने अपने भाइयों के लिए सिंहासन त्याग दिया था. किंतु उद्योग पर्व (बोरी अध्याय 147) में बताया गया है कि वह एक चर्म रोग से ग्रस्त था और उस का एक ही हाथ काम कर पाता था. यद्यपि वह प्रजा में,  ब्राह्मणों मेंअत्यंत लोकप्रिय था किंतु राजा को पूर्ण पुरुष होना चाहिए यह विचार कर ब्राह्मणोंने उसे के राज्याभिषेक पर आपत्ति की थी और विवश हो कर उस के पिता प्रतीप को मानना पड़ा था. शांतनु भाइयों में कनिष्ठ था. वह राजा इस लिए बन पाया क्यों कि बीच वाले भाई बाह्लीक ने अपने ननिहाल में रहने का निश्चय कर लिया था.

(2) यहाँ अर्जुन के दो पुत्रों के नाम नहीं गिनाए गये हैं - उलूपी से इरवान और चित्रांगदा से वभ्रुवाहन

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