Wednesday, 20 May 2015

आदि पर्व (26): धृतराष्ट्र और पाण्डु के जन्म

दीर्घतमस और राजा बलि का प्रकरण सुना कर भीष्म ने वंश चलाने के लिए किसी योग्य ब्राह्मण को समुचित धन दे कर, उसके द्वारा  विचित्रवीर्य की दोनो रानियों से पुत्र उत्पन्न कराने का सुझाव दिया. भीष्म की बात सुन सत्यवती ने सलज्ज स्वर में कौमार्यावस्था में पराशर से उत्पन्न हुए अपने पुत्र द्वैपायन के विषय में बताया. “द्वैपायन जन्म के तुरंत बाद मुझे छोड़ कर वेदाध्ययन करने निकल गया था. उस ने वेदों का पुनर्संकलन किया है और अब वह वेद व्यास कहलाता है. जाते जाते उस ने मुझ से कह रखा था कि जब भी मुझे उस की आवश्यकता हो मैं बस उसका स्मरण कर उसे बुला सकती हूँ.    
“यदि उस ऋषि से हम भरत वंश चलाने के लिए दोनो रानियों से पुत्र उत्पन्न करने की प्रार्थना करें तो वह हमारी बात नहीं उठाएगा.” 

वेद व्यास का नाम सुन कर भीष्म ने अपने हाथ जोड़ कर कहा “जो धर्म, अर्थ और काम तीनो पर विचार कर ऐसे कर्तव्य करे कि भविष्य में धर्म और अधिक धर्म दे, अर्थ और अधिक अर्थ दे और काम और अधिक कामसुख दे, वही वास्तव में बुद्धिमान है. अभी जो तुम ने कहा है, माँ, उस में हमारा कल्याण है, वह धर्म संगत भी है और मैं इस का पूर्ण समर्थन करता हूँ”.

सत्यवती ने तब व्यास का स्मरण किया. व्यास उस समय वेदों की व्याख्या में व्यस्त था. अपनी शक्ति से वह जान गया कि उसकी माँ उसे बुला रही है, और वह सब कुछ छोड़ हस्तिनापुर राजमहल में प्रकट हो गया – काला, कुरूप और समय से पहले वृद्ध. सत्यवती  उसे गले लगा कर रोने लगी. व्यास के पूछने पर सत्यवती ने उसे बुलाने का उद्देश्य बताया. “महाराज शांतनु का पुत्र विचित्रवीर्य बिना कोई उत्तराधिकारी छोड़े स्वर्ग सिधार गया है.उस का यह भाई भीष्म अपनी प्रतिज्ञा के चलते न तो सिंहासन पर बैठेगा न ही हस्तिनापुर के लिए कोई उत्तराधिकारी उत्पन्न करेगा. यदि कुछ नहीं किया गया तो हस्तिनापुर में अराजकता छा जाएगी. जैसे भीष्म पिता के पक्ष से विचित्रवीर्य का भाई है वैसे ही तुम माता के पक्ष से उस के भाई हो. तुम मेरे ज्येष्ठ पुत्र हो जैसे विचित्रवीर्य मेरा कनिष्ठ पुत्र था.    
“भीष्म की प्रार्थना और मेरा आदेश है कि विचित्रवीर्य की दोनो पत्नियों से तुम एक एक पुत्र उत्पन्न करो. इस से सभी प्राणियों का कल्याण होगा, प्रजा की रक्षा होगी और देव-पुत्री समान दोनो रानियों के गोद भरेंगे”.

“तुम जो चाहती हो माँ”, व्यासने कहा, “वह सर्वथा धर्म संगत हैं, ऐसा पहले भी कई बार हुआ है, और मैं धर्म की रक्षा के लिए अवश्य तुम्हारे आदेश का पालन करूँगा.  मैं अपने दिवंगत भाई को वरुण और मित्र के समान पुत्र दूँगा. बस दोनो स्त्रियों को मेरे बताए व्रत का एक वर्ष तक पालन करने दो. जिस स्त्री ने कठोर व्रत नहीं किए हुए हों वह मेरे निकट नहीं आ पाएगी”.

“लेकिन व्यास, उतना समय कहाँ है?” सत्यवतीने कहा. “जिस राज्य में राजा नहीं रहता वहाँ की अरक्षित प्रजा का नाश हो जाता है, वहाँ यज्ञ नहीं हो पाते हैं और उस राज्य के ऊपर से बादल बिना बरसे निकल जाते हैं.”  

“यदि ऐसी आकुलता में मुझे अपने भाई को पुत्र देने हैं तो रानियों को मेरी यह कठोर कुरूपता सहनी पड़ेगी” व्यास ने कहा “मेरे इस रूप और मेरे दुर्गंध को सह पाना किसी कठिन व्रत से कम नहीं है. रानियों से कह दो कि वे शुभ वस्त्र और आभूषण धारण कर अपने शयन कक्ष में मेरी प्रतीक्षा करें.”

यह कह व्यास अदृश्य हो गया और सत्यवती अपनी पुत्र वधुओं को एकांत में सारी व्यवस्था समझाने चली. रानियाँ इस के लिए तैयार नहीं थीं किंतु सत्यवती ने बहुत धैर्य से बार बार आग्रह कर भरत वंश को नहीं मरने देने के लिए उन्हे सहमत कर लिया.  सत्यवती ने उन्हे व्यास का नाम नहीं बताया था बस यह कहा था कि विचित्रवीर्य के कोई ज्येष्ठ उनसे पुत्र उत्पन्न करेंगे.

उचित समय पर अंबिका अपने शयन कक्ष में ज्येष्ठ की प्रतीक्षा कर रही थी. “कौन हो सकता है यह?” वहसोच रही थी “भीष्म या कोई और वृद्ध कुरू?”  कक्ष में दीपक जल रहा था, अचानक व्यास ने प्रवेश किया.  व्यास कुरूप था, कठोर मुख , उलझी जटा, अस्त-व्यस्त दाढ़ी और धधकती हुईं आँखें थीं उसकी. अंबिका उसे नहीं देख पाई और भय से उस ने अपनी आँखें बंद कर लीं. कक्ष से बाहर निकलने पर व्यास ने सत्यवती को खड़ा पाया.
“पुत्र होगा इसे?” सत्यवाती नेपूछा.
“हाँ” व्यास ने कहा, “दस सहस्त्र हाथियों का बल रखने वाले राजर्षि पुत्र को यह जन्म देगी, और उस पुत्र के, समय आने पर, अपने एक सौ पुत्र होंगे. किंतु यह पुत्र दृष्टिहीन होगा”
“पर व्यास” सत्यावती ने कहा “कुरुओं के राजसिंहासन पर कोई दृष्टिहीन कैसे बैठ सकेगा? कुरूवंश को एक और पुत्र चाहिए, तुम दूसरी रानी को भी एक पुत्र दो”.

उचित समय पर व्यास विचित्रवीर्य की दूसरी पत्नीअंबालिका के पास भी गया. अंबालिका को भय से पीली होती देख व्यास ने कहा “मुझे देख कर तुम पीली पड़ गयी हो इसीलिए तुम्हे पीत वर्ण का पुत्र होगा. उसका नाम भी पांडु (अर्थात पीत, विवर्ण) रहेगा.

सत्यवती ने उसे फिर एक बार प्रयास करने को कहा. व्यास ने अपनी माँ की बात नहीं उठाई. किंतु जब सत्यवती ने अंबिका को दुबारा ऋषि के साथ रहने को कहा तो अंबिका ने, उसके विकट रूप को याद कर, अपने बदले अपनी एक दासी को अपने शयन कक्ष में बिठा दिया. व्यास के आने पर उस दासी ने उठ कर ऋषि का सत्कार किया और व्यास ने जाते समय उस से कहा था “तुम अब दासीनहीं रहोगी. तुम एक बहुत विद्वान और धार्मिक पुत्र को जन्म दोगी”

बाहर निकलने पर सत्यवती फिर खड़ी मिली. अंबिकाने अपने बदले अपनी दासी को भेजा था,यह बता कर व्यास विलुप्त हो गया.  समय पूरा होने पर उस दासी ने विदुर को जन्म दिया था. विद्वान विदुर के रूप में मान्डव्य ऋषि के शाप के चलते धर्मराज ने पृथ्वी पर शूद्र वर्ण में जन्म लिया था (1). विदुर धर्मज्ञ था उसे अर्थ और राजनीति का भी सम्यक ज्ञान था. उस में क्रोध औरलोभ का लेश भी नहीं था. अपनी दूरदृष्टि और अपने शांत स्वभाव से वह बस कुरुओं के कल्याणकी सोचता रहता था.

“और इस तरह” वैशम्पायन ने जनमेजय को कहा “भरत के वंश को चलाने के लिए धृतराष्ट्र और पांडु के जन्म हुए थे.”





(1) धर्मराजके शापित होने का प्रकरण आदिवंशावतरण पर्व (1) में है: लिंक 

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